दुर्लभ बीमारियां : क्यों है मंहगा इलाज़ ?
चर्चा में क्यों
- केंद्र सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में दुर्लभ बीमारियों के लिए लोगों द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए आयातित सभी खाद्य पदार्थों और दवाओं को कस्टम ड्यूटी से छूट दी थी।
- दुर्लभ बीमारियों के लिए अधिकांश उपचारों की कीमत बहुत अधिक होती है।
- इस तरह ये निर्णय उन परिवारों के लिए बेहद अहम् साबित होगा जिनके सदस्य इस बीमारी से ग्रसित हैं।
- दुर्लभ बीमारियों की दवाओं के साथ-साथ सरकार ने कैंसर इम्यूनोथेरेपी दवा कीट्रूडा पर भी सीमा शुल्क हटा दिया।
सीमा शुल्क से छूट दी गई दवाएं
- 51 दुर्लभ बीमारियों के प्रबंधन के लिए आवश्यक दवाओं और खाद्य पदार्थों को सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया गया है।
- दुर्लभ बीमारियों के अंतर्गत लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर , मेपल सिरप मूत्र रोग, गंभीर खाद्य प्रोटीन एलर्जी, विल्सन की बीमारी तथा अन्य शामिल हैं
- इन दवाओं पर आमतौर पर 10 प्रतिशत का मूल सीमा शुल्क लगता है
- जबकि कुछ टीकों या दवाओं पर पहले से अधिसूचित 5 प्रतिशत या शून्य से कम शुल्क लगता है।
- स्पाइनल मस्कुलर एथ्रोफी और ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के उपचार के लिए दवाओं को पहले से ही सीमा शुल्क से छूट दी गई थी।
क्या होती हैं दुर्लभ बीमरियां
- दुर्लभ बीमारियां आम तौर पर उन बीमारियों को कहा जाता है जो जनसंख्या के बहुत कम हिस्से को प्रभावित करती हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुर्लभ बीमारी उन बीमारियों को कहा जाता है जिनका जीवनकाल काफी लंबा होता है और जो इंसानों में कमज़ोरी लाती हैं।
- इसके अलावा इनसे प्रति 10000 जनसँख्या पर 10 या उससे कम व्यक्ति ही प्रभावित होते हैं।
- पूरी दुनिया में तकरीबन 7000 से 8000 दशाएं इस दुर्लभ बीमारियों की श्रेणी में आती हैं।
- दुर्लभ बीमारियों का परिदृश्य बदलता रहता है,
- इसके तहत नई स्थितियों की पहचान होती रहती है और इनकी रिपोर्ट भी बनायी जाती रहती है
- इन बीमारियों के सीमित अनुभव के साथ, उनका निदान और परीक्षण करना अधिक कठिन होता है।
- देश की राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति 2021 के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त राज्य में एक दुर्लभ बीमारी वाले व्यक्ति का निदान औसतन 7.6 साल बाद और यूनाइटेड किंगडम में 5.6 साल बाद होता है।
- निदान होने के बाद भी, अधिकांश दुर्लभ बीमारियों का कोई विशिष्ट उपचार नहीं होता है और जो इलाज़ मौजूद हैं वे आमतौर पर बेहद मंहगे होते हैं।
दुर्लभ बीमारियों की दवाएं इतनी मंहगी क्यों हैं ?
- हाल के सालों में दुर्लभ बीमरियों के उपचार में तेज़ी आयी है
- लेकिन इसके बावजूद भी तकरीबन 95 फीसदी मामलों में कोई विशेष उपचार मौजूद नहीं है।
- दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरिज़्ज़ों की तादाद बहुत कम है
- जिसकी वजह से दवा बनाने वाली कंपनियां इन रोगों के उपचार सम्बन्धी शोध पर पैसे खर्चने में पीछे रहती हैं।
- यही कारण है कि दुर्लभ स्थितियों के लिए जो दवाएं मौजूद हैं उन्हें “ऑर्फ़न ड्रग्स ” के रूप में जाना जाता है
- और अनुसंधान और विकास की लागत को कम करने के लिए इन्हे काफी ज़्यादा दामों पर बेचा जाता है।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति के अनुसार, 10 किलो वजन वाले बच्चे के लिए कुछ दुर्लभ बीमारी का इलाज 10 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक सालाना हो सकता है।
- व्यक्ति की उम्र और वजन के साथ लागत बढ़ने के साथ उपचार को आजीवन जारी रखना पड़ता है।
- दुर्लभ रोग नीति की माने तो बहुत कम दवा कंपनियां वैश्विक स्तर पर दुर्लभ रोगों के लिए दवाएं बना रही हैं
- भारत में ऐसी दवा कंपनियां न के बराबर हैं।
भारत में दुर्लभ रोग की स्थिति
- भारत में इन रोगों के कोई पुख्ता आंकड़ें नहीं मौजूद हैं
- लेकिन ऐसे मामले सामने आने पर इन्हे भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् द्वारा स्थापित पोर्टल में दर्ज़ किया जाता है ।
- दिसंबर 2021 में संसद में पेश किये गए आंकड़ों पर गौर करें तो पोर्टल में दर्ज़ ऐसे मामलों की संख्या 4001 थी।
- सबसे अधिक रिपोर्ट की जाने वाली दुर्लभ बीमारी में प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी डिसऑर्डर , लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर , सिस्टिक फाइब्रोसिस , ओस्टोजेनेसिस इम्परफेक्ट और कुछ रूप मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी आदि मुख्य हैं।
- कस्टम ड्यूटी से राहत के अलावा, सरकार ने उत्कृष्टता केंद्रों में किसी भी प्रकार की दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने का भी प्रावधान किया है।
- इससे पहले, समूह 1 दुर्लभ बीमारियों वाले लोगों को 20 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी, जहां एकमुश्त उपचारात्मक उपचार मौजूद होता है।