नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी


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  • हाल ही में 7 अक्टूबर 2020 को नेचर पत्रिका में छपे एक शोध पात्र के हवाले से पता चला है की नाइट्रस ऑक्साइड गैस का मानव उत्सर्जन साल 1980 और 2016 के बीच तकरीबन 30 फीसदी बढ़ गया है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड गैस एक ऐसी ग्रीन हाउस गैस है जिसे कार्बन डाई ऑक्साइड गैस के मुकाबले तकरीबन 300 गुना ज़्यादा खतरनाक मानी जाती है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड गैस धरती पर इंसानों के सतत विकास के लिए घातक है।
  • हमारे वायुमंडल में ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेदार ग्रीनहाउस गैस में कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन के बाद सबसे ज़्यादा इसी गैस का सांद्रण है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड के बारे में सबसे ज़्यादा चिंताजनक बात ये है की ये वायुमंडल में 125 सालों तक रह सकती है।
  • ये एक ग्रीन हाउस गैस जो कार्बन डाई ऑक्साइड से लगभग 300 गुना ज़्यादा घातक है।
  • N2O भी ओजोन परत के लिए काफी खतरनाक है क्यूंकि ये वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की ही तरह काफी लम्बे समय तक बनी रहती है।
  • ये वायुमंडल में तकरीबन 125 सालों तक मौजूद रह सकती है।
  • पूरी दुनिया में इसकी मौजूदगी साल 1750 में महज़ 270 पार्ट पर बिलियन थी जबकि साल 2018 आते आते इसके सांद्रण में 20 फीसदी का इज़ाफ़ा हो गया।
  • मौजूदा वक़्त में इसका सांद्रण तकरीबन 331 पार्ट्स पर बिलियन है।
  • इंसानों के द्वारा किये जा रहे उत्सर्जन के चलते पिछले 5 दशकों में इसका सांद्रण बड़ी तेज़ी से बढ़ा है।
  • इस शोध को एक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी के ज़रिये अंजाम दिया गया।
  • इस भागीदारी में इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव और वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम की सहसंस्था ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ऑफ़ फ्यूचर अर्थ शामिल थे।
  • इस दाल में 14 देशों में स्थित 48 संस्थाएं और इनसे सम्बद्ध 57 वैज्ञानिक शामिल थे।
  • अभी तक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन पर किये गए अध्ययनों में ये सबसे सिलसिलेवार अध्ययन है क्यूंकि इसमें प्राकृतिक और मानवीय दोनों तरह के स्त्रोत को शामिल किया गया है।
  • अध्ययन में पाया गया की कुल उत्सर्जन में से तकरीबन 43 फीसदी उत्सर्जन सिर्फ मानवीय स्त्रोतों से आता है जबकि सबसे ज़्यादा इसका उत्सर्जन भारत चीन और ब्राज़ील जैसी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के ज़रिये होता है।
  • उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी का सीधा मतलब है की वातावरण में गैर कार्बन स्त्रोतों की भी बढ़ोत्तरी लगातार हो रही है जिससे प्रदूषण और बढ़ता जा रहा है।
  • वैश्विक जलवायु परिवर्तन से तालुक रखने वाले ज्यादातर समझौतों में आम तौर पर कार्बन उत्सर्जन पर ही बात होती है। गैर कार्बन उत्सर्जकों को आम तौर पर इन समझौतों से बाहर कर दिया जाता है।
  • इस शोध में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है की पिछले 4 दशकों के दौरान होने वाले N2O उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र से आता है।
  • इसकी सबसे बड़ी वजह है खेती में इस्तेमाल होने वाले नाइट्रोजन आधारित फर्टीलिज़ेर्स का इस्तेमाल।
  • खाद्य पदार्थों और मवेशियों के लिए चारे की बढ़ती मांग के मद्देनज़र फर्टीलिज़ेर्स के इस्तेमाल में भी इज़ाफ़ा हुआ है जिसकी वजह से इसके उत्सर्जन में भी लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।
  • बेहतर फसल प्रबंधन और उन्नत तकनीकी के इस्तेमाल से , जैविक खाद का इस्तेमाल कर N2O उत्सर्जन को काफी हद तक कम किया जा सकता है
  • औद्योगिक और कृषि नीतियों में दुनिया भर में बदलाव के ज़रिये इन उत्सर्जनों को काफी कम किया जा सकता है इसके अलावा ग्रीन हाउस गैसों में कमी भी इसमें काफी मददगार साबित होगी
  • पर्यावरण समझौतों में ज़्यादा से ज़्यादा गैर कार्बन स्त्रोतों को शामिल करना भी बेहद ज़रूरी कदम है
  • 2019 में कोलंबो श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सतत नाइट्रोजन प्रबंधन की शर्तों को पूरा करके भी N2O का उत्सर्जन काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • इस पहल के तहत सभी देशों से नाइट्रोजन उत्सर्जन कम करने के मद्देनज़र निरोगें प्रबंधन की बेहतरीन नीतियों को अपनाने की गुज़ारिश की गयी थी।
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