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- हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पहले चरण के परिणाम जारी किये।
- यह इस तरह का पांचवां सर्वेक्षण है और पहला चरण जिसके लिए आंकड़े साल 2019 के दुसरे छमाही में इकट्ठा किये गए थे में 17 राज्यों और 5 संघ शासित राज्यों को शामिल किया गया था।
- साल 2015 से लेकर 2019 के बीच कई भारतीय राज्यों में कई बाल कुपोषण सम्बन्धी आंकड़ों में बेहद चौकाने वाले परिणाम देखने को मिले हैं।
- दुसरे शब्दों में कहें तो पोषण का स्तर बढ़ने की जगह इन राज्यों में कुपोषण की समस्या काफी बढ़ गयी है। इन राज्यों में या तो कुपोषण बढ़ा है या फिर इस समस्या में कमी का स्तर बेहद सामान्य रहा है।
- सर्वेक्षण का दूसरा चरण कोविद महामारी के चलते बाधित रहा। इस सर्वेक्षण के परिणामों के आने की उम्मीद अगले साल 2021 के मई महीने में आने की लगाई जा रही है।
- दुसरे चरण में कुछ बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश पंजाब और झारखंड को भी इसकी जद में लाया जाएगा।
- हालांकि जानकारों का मानना है की बाल कुपोषण पर दुसरे चरण के आंकड़ों में इससे भी बुरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं जिसकी वजह कोरोना महामारी का प्रभाव हो सकता है।
- कोरोना महामारी की वजह से लोगों की निजी आय , खाने की उपलब्धता और स्वास्थ्य सेवाओं के मुहैया होने पर देखा गया है।
- ऍन एफ एच एस पूरे देश में घरेलु स्तर पर किया जाने वाला सबसे बड़ा सर्वेक्षण माना जाता है।
- इसके आंकड़ों को कई चरणों में इकट्ठा किया जाता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसके लिए इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पापुलेशन साइंसेज मुंबई को इसकी नोडल संस्था बनाया है।
- यह सर्वेक्षण IIPS ORC मैक्रो , अमेरिकी संस्था मेरीलैंड और हवाई स्थित संस्था ईस्ट वेस्ट सेंटर के संयुक्त प्रयासों से किया जाता है।
- इस सर्वेक्षण के लिए धन मुहैया कराने का काम संयुक्त राज्य अंतराष्ट्रीय विकास संस्थान (USAID )करती है जिसे unicef का भी सहयोग मिलता है।
- यह पांचवा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण है जिसे साल 2019 -20 के लिए कराया जा रहा है। इससे पहले किये गए सर्वेक्षणों को साल 1992 -93 , 1998 -99 , 2005 -06 और 2015 -16 में संपन्न कराया गया था।
- ऍन एफ एच एस के हर चरण में कुछ नयी संभावनाएं दर्ज़ की गयी है।
- मिसाल के तौर पर पांचवे सर्वेक्षण में विद्यालय पूर्व शिक्षा , विकलांगता , शौचालय की सुविधा , मृत्यु पंजीकरण , मासिक धर्म के दौरान साफ़ सफाई और गर्भपात के तरीके और कारणों से जुड़े सवालों को भी शामिल किया गया है।
- ऍन एफ एच एस के आंकड़े इस लिए सबसे अहम् हैं क्यूंकि इनकी मदद से न सिर्फ शोध से जुडी ज़रूरतें पूरी की जाती हैं बल्कि केंद्रीय और राज्य स्तर पर नीति निर्माण से जुडी जरूरतें भी इसकी मदद से पूरी की जाती है।
- सर्वेक्षण के परिणामों की मदद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।
- जैसे बिहार में बाल कुपोषण के आंकड़ों को वैश्विक स्तर पर रखने में इससे मदद मिलती है।
- शोधकर्ताओं और जानकारों का कहना है की इन परिणामों से एक ऐसी तस्वीर उभर कर सामने आयी है जिसे बेहद संजीदा और भयावह माना जा सकता है।
- कई सारे मानकों के आधार पर यह कहा जा सकता है की पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले राज्यों की स्थिति में काफी गिरावट आयी है। हालांकि इस सर्वेक्षण में राज्यों की स्थिति में सुधार भी आया है।
- सबसे चिंताजनक बात ये है की बच्चों के कुपोषण से जुड़े मानकों में नवजातों और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर ,बच्चों में बौनापन , दुबलापन और कम वज़न के बच्चों सम्बन्धी आंकड़ों में लगातार गिरावट देखने को मिली है या फिर कोई बदलाव नहीं हुआ है।
- दुसरे लफ़्ज़ों में साल 2014 से 2019 के बीच जन्मे बच्चों में कुपोषण के मामले पिछली पीढ़ी के बच्चों से ज़्यादा दिखाई पड़े।
- बौने बच्चों के आंकड़े ज़्यादा चिंताजनक हैं क्यूंकि कम वज़न और निर्बलता के मुकाबले बौनापन कुपोषण की बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करता है।
- बच्चों में बढ़ता कुपोषण और महिलाओं में बढ़ती रक्त अल्पता (खासकर गर्भवती महिलाओं में) इस बात की ओर इशारा करती है की भारत में पिछले 5 सालों में जन्मे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकारों से पीड़ित होने की ज़्यादा संभावना रही है।
- ताज़ा परिणाम ये बताते हैं की सेहत के नज़रिये से पानी की उपलब्धता और साफ़ सफाई के तरीकों के बावजूद साल 2015 से भारत में हालात ज़्यादा बदतर हुए है।
- ताज़ा सर्वेक्षण के परिणामों से एक बात ज़रूर पता चली है की तमाम योजनाओं और एलानों के बावजूद कई तबकों में हालात बद से बदतर हैं जिसकी साफ़ वजह ये है की शायद नीति निर्माताओं को और भी कोशिशें करने की ज़रुरत है ताकि इन आंकड़ों में सुधार लाया जा सके।