म्यांमार में तख्ता पलट: डेली करेंट अफेयर्स
- म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी को तड़के ही देश की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
- यह सब देश की नयी संसद की तय बैठक होने से पहले ही हुआ है।
- इस तख्ता पलट में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी की नेता अंग सान सू ची को हिरासत में ले लिया गया है ।
- गौर तलब है की सू ची की पार्टी ने साल 2020 के चुनावों में बड़ी जीत हासिल की थी। इस सैन्य तख्ता पलट में म्यांमार के राष्ट्रपति विन म्यिन्त को भी नज़रबंद कर लिया गया है।
- सोमवार को तड़के ही सेना ने अपने टेलीविज़न चैनल के माध्यम से प्रसारण के दौरान पूरे देश में 1 साल के लिए आपातकाल का एलान किया।
- गौर तलब है की अब से 10 साल पूर्व सेना ने सत्ता की कमान जनता की चुनी हुई सरकार को सौंपी थी।तख्तापलट ने म्यांमार में फिर से एक बार डर का माहौल पैदा कर दिया है ।
- यहां पर यह बताना ज़रूरी है की साल 2011 में यहां पांच दशकों से चले आ रहे दमनकारी सैन्य शासन का खात्मा हुआ था।
- म्यांमार की सेना ने नवंबर 2020 में हुए आम चुनावों में अनियमितता के आरोप लगाए थे।
- सेना ने इस चुनाव में पड़े 90 लाख वोटों की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाए थे।
- सेना ने मांग की थी की म्यांमार के चुनाव की निगरानी करने वाली संस्था यूनाइटेड एलेक्शंस कमीशन या सरकार या बाहर जाने वाले सांसद 1 फरवरी को संसद का सत्र होने के पहले ये साबित करे की चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हुए है। हालांकि सेना की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया गया था।
- इर्रावादी की समाचार वेबसाइट के मुताबिक़ सेना के कमांडर इन चीफ जनरल मिन औंग लाइंग ने कहा की तत्मादाव या म्यंमार सेना को संविधान का पालन करने की ज़रुरत है।
- गौर तलब है की म्यनमार का संविधान साल 2008 में सैन्य शासन के दौरान बनाया गया था और उसी साल अप्रैल के महीने में इसे जनमत संग्रह के लिए भी भेज दिया गया था जिस पर सेना के ऊपर सवालिया निशाँ भी लगाए गए थे।
- गौर तलब है की एन एल डी ने इस जनमत संग्रह और 2010 में संविधान के मुताबिक़ हुए चुनावों का विरोध किया था
- संविधान को सेना द्वारा पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के मद्देनज़र लागू किया गया था।
- इसके अलावा सेना द्वारा संविधान को बनाने का मकसद म्यांमार को बाहरी मुल्कों के लिए खोलना भी था।
- हालांकि ये एक मज़बूरी भी थी क्यूंकि म्यंमार के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। लेकिन सेना ने इस संविधान में भी अपनी भूमिका और राष्ट्रीय मामलों में भी अपनी अहमियत को कायम रखा।
- संविधान में वर्णित प्रावधानों के अनुसार सेना ने संसद के दोनों सदनों में 25 फीसदी सीटें बचाकर रखी जिनका इस्तेमाल सेना के अधिकारियों को संसद में नियुक्त करने के लिए किया जाता था।
- लेकिन इस बार एन एल डी के चुनावों में भारी जीत की वजह से सेना को मिलने वाली सीटों में गिरावट हो गयी।
- सेना के एक प्रवक्ता का कहना था की सेना ने पूरे 314 राज्यों और इलाकों में 86 लाख गड़बड़ियां पाईं जिससे ये साबित हुआ की कई लोगों ने एक से ज़्यादा बार मतदान किया या किसी अन्य तरह की चुनावी धांधली में लिप्त रहे।
- हालांकि चुनाव संस्था यू ई सी का कहना था उसे किसी तरह की चुनावी धांधली या धोकेबाज़ी के कोई सबूत नहीं मिले।
- यहाँ हुए मतदान को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों चुनावी स्टाफ मीडिया पर्यवेक्षकों और बाकी नागरिक संस्थाओं की देखरेख में संपन्न कराया गया।
- म्यांमार में एन एल डी के सत्ता में आने के बाद प्रजातांत्रिक बदलाव आने के संकेत मिलने लगे थे।
- कोरोना महामारी के दौरान 2020 में हुए चुनाव के परिणामों के बाद ये माना जा रहा था की यहां के संविधान में सुधार किये जायेंगे जिसके बाद यहां की सत्ता में सेना की भूमिका को कम किया जाएगा।
- हालांकि इन सुधारों को लागू करना बेहद मुश्किल माना जा रहा था। इसकी वजह यहां के संविधान में संशोधन प्रक्रिया का काफी जटिल होना है।
- साल 2011 में सेना ने सू ची को दो दशकों से चले आ रही नज़रबंदी से रिहा करने का फैसला लिया जिसके बाद ये कयास लगाए जाने लगे थे की म्यनमार में प्रजातांत्रिक बदलाव कायम हो जाएगा।
- हालांकि इसके बाद सू ची ने भी सेना की और नरम रवैया दिखाया और सेना द्वारा रोहिंग्याओं पर किये गए अत्याचारों के आरोपों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय में सेना की तरफदारी की।