
चीन ने हाल ही में ये एलान किया है की वो 2060 से पहले तक कार्बन उत्सर्जन को ख़त्म कर देगा। गौरतलब है चीन अभी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन के मामले में पहले पायदान पर है। कार्बन उत्सर्जन के मामले में अमेरिका और भारत क्रमशः दुसरे और तीसरे पायदान पर हैं। चीन द्वारा ये एलान किये जाने के बाद भारत और चीन की ज़िम्मेदारी भी हो जाएगी की किसी तरह वो भी अपने देश में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने के कदम उठाएं। इसके तहत एक कदम ये उठाया जा सकता है की ये देश ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाएं जिसके तहत सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। इसका सबसे अच्छा तरीका है उन उद्योगों और आयतों पर कर आरोपित करना जिसे सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन हो रहा है चाहे वो ऊर्जा से सम्बंधित हो या परिवहन से।
हाल ही में इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड ने यूरोपियन संघ की उस योजना के लिए हामी भरी है जिसमे आयात पर कार्बन कर लगाने की बात की गयी है। दुनिया में इस पर अमल करने वाला सबसे पहला देश भारत हो सकता है जो आयात पर कार्बन कर लगाने में सबसे आगे होगा।
दिल्ली में बढ़ती बेतरतीब गर्मी , दक्षिणी पश्चिमी चीन में बाढ़ और इस साल अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया प्रांत में लगी आग आने वाले खतरे की दस्तक है जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पैदा हो सकता है। 2020 में जारी वैश्विक जलवायु संकट सूचकांक में भारत पांचवे पॉयदाकन पर है।
1998 से 2017 के बीच आपदा से प्रभावित देशों में तकरीबन 2.9 ट्रिलियन डॉलर का नुक्सान हुआ। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इनमे से 77 फीसदी नुक्सान सिर्फ जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं की वजह से हुआ था। अमेरिका में इसके चलते सबसे ज़्यादा नुक्सान हुआ जबकि इसके बाद चीन जापान और भारत का नंबर था।
कोविद 19 वैश्विक महामारी के चलते भारत समेत पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण का स्तर गिरा है। लेकिन बढ़ती औद्योगिक गतिविधियों के साथ भारत में फिर से ये स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड का सांद्रण 414 पार्ट्स पर मिलियन के आस पास था।
कड़े कदम उठाने की ज़रुरत
भारत ने साल 2030 तक गैर जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कर 40 फीसदी बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया है। इससे भारत के कार्बन उत्सर्जन 2005 के स्तर से तकरीबन एक तिहाई होने की उम्मीद लगाई जा रही है। भारत को 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन को कम करने के मद्देनज़र कुछ ठोस कदम उठाने होंगे ताकि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से ख़त्म करने का लक्ष्य आसानी से पूरा किया जा सके।
क्या है कार्बन टैक्स
कार्बन टैक्स या कार्बन कर दरसल में प्रदूषण पर लगाए जाने वाले एक कर की ही तरह होता है। इस कर में कार्बन उत्सर्जन की तादाद के मुताबिक़ जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं इस्तेमाल पर कर लगाया जाता है।
इसके तहत सरकार प्रतिटन कार्बन के उत्सर्जन पर दाम तय करती है और फिर इसे बिजली, प्राकृतिक गैस या तेल पर कर के रूप में बदल देती है।
इसका फायदा ये होता है की इस कर के चलते ज़्यादा कार्बन छोड़ने वाले ईंधन महंगे हो जाते हैं। महंगे होने की वजह से ऐसे ईंधन की बिक्री कम हो जाती है और इसी वजह से इसका इस्तेमाल भी कम हो जाता है।
क्या है कार्बन टैक्स लगाने का आधार
- कार्बन टैक्स, दरसल में अर्थशास्त्र के नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के सिद्धांत पर आधारित है।
- एक्सटर्नलिटीज़ का मतलब अर्थशास्त्र में वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से मिली लागत या मुनाफे से हैं, जबकि अगर नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ की बात करें तो ये वैसे लाभ हैं जिनके लिये ग्राहक को भुगतान नहीं करना पड़ता।
- ये ऐसे समझा जा सकता है की फॉसिल फ्यूल या जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से कोई आदमी या संस्था मुनाफा कमाती है लेकिन फॉसिल फ्यूल से होने वाले उत्सर्जन का बुरा असर पूरे समाज पर पड़ता है।
- इसी वजह से इस तरह के मुनाफे को नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के तहत लाया जाता है, क्यूंकि उत्सर्जन से होने वाले बुरे असर के एवज़ में मुनाफा तो कमाया जा रहा है लेकिन इसके लिये कोई टैक्स या कर नहीं दिया जा रहा है।
- नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ का आर्थिक सिद्धांत के तहत नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के एवज़ में भी करारोपण होना चाहिए।
क्यों सही है कार्बन टैक्स
कार्बन टैक्स लगाने से जीवाश्म ईंधनों के दाम में बढ़ोत्तरी होगी जिसकी वजह से लोगों का रुझान वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल की तरफ होगा और इसकी वजह से प्रदूषण के स्तर में भी काफी कमी आ जाएगी।
कार्बन टैक्स की वजह से जीवाश्म ईंधन बनाने वाली या फिर इनके इस्तेमाल को बढ़ावा देने वाली कंपनियों और उद्योगों में वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों जैसे सौर ऊर्जा वायु ऊर्जा की तरफ ज़्यादा खिंचाव आएगा और परिणामतः कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी ।
इसके अलावा सरकार को भी कार्बन टैक्स के ज़रिये ज़्यादा राजस्व मिलेगा अउ इस बढे हुए राजस्व से सरकार आपदाओं और प्रदूषण से पैदा होने खतरों से आसानी से निपट पाएगी।
कार्बन टैक्स लगाने में क्या हैं दिक्कतें
कार्बन टैक्स कितना होना चाहिए इसे लगाने के क्या मानदंड होने चाहिए , कितने स्तर पर लगाना चाहिए इसकी क्या दरें होनी चाहिए इन सब मसलों को लेकर कई सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब ढूढ़ना मुश्किल है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और राजनीती में उद्योगों की पैठ की वजह से इसको लागू करने में दिक्कतें आ सकती हैं
पोलुशन हेवेन को बढ़ावा : इसको लागू किये जाने के बाद कई देशी और विदेशी कंपनियां ऐसे देशों को जाएंगी जहां कार्बन टैक्स से जुडी दिक्कतें कम होंगी ऐसे में इस देश में प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा और यह पोलुशन हेवन के रूप में कार्य करेगा। निवेशकों के दुसरे देश जाने की वजह से कई लोग बेरोज़गार हो जायेंगे और अर्थव्यस्था पर बुरा असर पडेगा।
भारत जैसे देश ,में पर्यावरणीय प्रदूषण के सबसे ज़्यादा बुरे असर देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में भारत में कार्बन टैक्स को आरोपित कर बढ़ते प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है साथ ही साथ कार्बन ट्रेडिंग के ज़रिये ऐसी व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सकता है जिससे कार्बन उत्सर्जन को रोकने में जान भागीदारी हासिल हो सके।