कडावुर स्लेंडर लॉरिस सैंक्चुरी (Slendor Loris Centuary)
चर्चा में क्यों:
- स्लेंडर लॉरिस (Slender Loris) को बचाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने करूर और डिंडिगुल जिले (Karur & Dindigul) में 11,806 हेक्टेयर के जंगल को सैंक्चुरी बना दिया है.
- इस सैंक्चुरी का नाम है कडावुर स्लेंडर लॉरिस सैंक्चुरी (Kadavur Slender Loris Sanctuary).
मुख्य बिंदु:
- स्लेंडर लॉरिस सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही मिलता है.
- हालांकि लॉरिस की अन्य प्रजातियां दक्षिण एशियाई देशों में जैसे- मलेशिया, इंडोनेशिया, जकार्ता आदि जगहों पर मिलती हैं.
- कुछ अफ्रीका में भी मिलती हैं. पर स्लेंडर लॉरिस पतला होता है.
- यह सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही मिलता है.
- इसकी दो प्रजातियां होती हैं. रेड स्लेंडर लॉरिस (Red Slender Loris) और ग्रे स्लेंडर लॉरिस (Grey Slender Loris).
- ये अपना ज्यादा समय पेड़ों के ऊपर बिताते हैं. धीमे-धीमे चलते हैं. इसलिए इन्हें स्लो लॉरिस (Slow Lorris) भी बुलाते हैं.
- स्लेंडर लॉरिस आमतौर पर ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट, झाड़ियों वाले जंगल और दलदली इलाकों के आसपास मिलते हैं.
- ये आमतौर पर कीड़े, छिपकलियां, पौधों नए तने और फल खाते हैं. शिकार करना सही समय रात ही होता है.
- पहले इन्हें लेमूर (Lemur) बंदरों की प्रजाति के साथ शामिल किया जाता था. लेकिन बाद में अलग कर दिया गया.
- हालांकि यह एक प्राइमेट (Primate) है. लेकिन पूरा बंदर नहीं कह सकते.
किन नामों से पुकारा जाता है अलग अलग देशों में:
- भारत में स्लेंडर लॉरिस को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है.
- तेलुगू में देवांगा पिल्ली या आरावी पापा कहते हैं. तुलू में काडा नारामणि और मराठी में वानर मनुष्य कहते हैं.
- केरल में कुट्टी थेवांगु कहते हैं. मलयालम में कट्टू पापा कहते हैं.
- श्रीलंका में इन्हें सिंहाला भाषा में उनआहापुलुवाला बुलाते हैं.
- स्लेंडर लॉरिस आमतौर पर समुद्र तल से 470 मीटर के ऊपर वाले इलाके में रहते हैं.
खतरे में अस्तित्व:
- तमिलनाडु में इनकी संख्या लगातार घट रही है.
- स्थानीय लोग यह मानते हैं कि स्लेंडर लॉरिस के पास कोई मेडिकल या मैजिकल पावर है. इसलिए इनका शिकार होता रहा है.
- इसके अलावा इनकी स्मगलिंग भी होती है. इनके जंगल खत्म हो गए.
- ICUN ने इस जीव को विलुप्त होते जीवों की लिस्ट में डाल रखा है. इसलिए इनके सरंक्षण के लिए यह सैंक्चुरी बनाई गई है.