क्या है POCSO की धारा 29


 चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायलय ने ये फैसला दिया की यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण सम्बन्धी कानून 2012 की धरा 29 के तहत अपराध तभी दर्ज़ किया जा सकता है जब एक बार ट्रायल शुरू हो जाए यानि अपराधी के खिलाफ आरोप साबित हो जाएँ।

मुख्य बातें

पोक्सो एक्ट की धारा 29

  • इसके मुताबिक़ अगर कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के खिलाफ अपराध में नाम जद है तो विशेष न्यायलय जहां ये मामला चल रहा है नामजद को अपराधी मानेगी अब सवाल यह उठता है की मामले की सुनवाई के वक़्त ही किसी को अपराधी माना जा सकता है या फिर जब किसी व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही है उस वक़्त भी उसे अपराधी माना जाएगा।
  • यहां पर ये बात साफ़ करना ज़रूरी है की आरोप लगने के पहले अगर जमानत याचिका पर विचार किया जा रहा है तो पोक्सो की धारा २९ के कोई मायने नहीं है। लेकिन अगर आरोप लगा दिए गए हैं और जमानत याचिका उसके बाद दाखिल की जाती है तो ऐसे में धारा २९ के तहत उसे अपराधी माना जाएगा।
  • यहाँ पर ये स्पष्ट कर देना ज़रूरी है की इस कानून की धारा २९ में नाबलिग पीड़िता की गवाही के आधार पर ही जज फैसला सूना सकता है।
  • इस क़ानून के तहत पीड़िता को ये साबित करने की ज़रुरत नहीं है की उसपर अपराध हुआ है बल्कि आरोपी को ये साबित करना होता है की उसने अपराध नहीं किया
  • इसके तहत 5  साल की सज़ा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड की सज़ा का प्रावधान है।
  • इसके तहत एक बार आरोप दाखिल हो जाने के बाद ही अपराधी ये जान पाटा है की उसने क्या क्या अपराध किये हैं और उसे किन किन अपराधों के तहत अपना बचाव दाखिल करना है।
  • पूर्व में इस कानून में अन्य कानूनों की ही तरह दोषी व्यक्ति को खुद को बेक़सूर साबित करना होता था जिसकी वजह से नाबालिगों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों में सज़ा की दर कम थी।
  • इसके तहत आरोप लगने के बाद जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान  न्यायलय ने कुछ नए नियम भी बनाये। न्यायलय ने कहा की इसके समक्ष पेश किये गए सबूतों की गुणवत्ता और प्रकृति के अलावा अदालत कुछ और कारणों पर भी गौर फ़रमायेगी।
  • इसके तहत इन बातों पर की क्या अपराध के दौरान डराना धमकाना हिंसा या बर्बरता भी की गयी है या नहीं। इसके अलावा ज़मानत की सुनवाई कर रही अदालत इस बात पर भी गौर करेगी की कहीं नाबालिग के खिलाफ अपराध बार बार तो नहीं किया गया।

प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012′ यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012

●18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में अपने आप आ जाता है। जिससे यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है।

●इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ दुष्कर्म, यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई का प्रावधान है। यही नहीं, इस एक्ट के जरिए बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान होती है।

●यहां पर यह भी बता दें कि 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस एक्ट के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, एक्ट की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है, जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को 3 साल तक की सजा हो सकती है।

●वर्ष 2018 में इसमें संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया कि 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने के दोषियों को सजा-ए-मौत भी दी जा सकती है। इस कानूनी संशोधन के बाद आपराधिक प्रवृति के लोगों में हड़कम्प मचा हुआ है।

●2012 में बने पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं पर नजर दौड़ाएंगे तो यह पाएंगे कि इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इस प्रकृति के मामले में सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।

●पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। ऐसे मामले में दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

●पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इस प्रकार की धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।

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